Varanasi News: धार्मिक ग्रंथों में पंचक्रोशी यात्रा का बहुत बड़ा महत्व

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वाराणसी । हिंदू धर्म में तीर्थ यात्रा के अलावा एक और यात्रा है जो कि बेहद खास मानी जाती है. वह है पंचक्रोशी यात्रा. धार्मिक ग्रंथों में पंचक्रोशी यात्रा का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है भगवान शिव के भक्तों के लिए पंचक्रोशी यात्रा बहुत खास होती है क्योंकि महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर भगवान शिवजी के भक्त पंचक्रोशी यात्रा करते हैं. पंचक्रोशी यात्रा करने से श्रद्धालुओं को अक्षय फल की प्राप्ति होती है.पंचक्रोशी यात्रा करने के लिए देश विदेश से लोग काशी पहुंचते हैं. हिंदू धर्म के हर अनुयायियों का यह दायित्व बनता है कि वह पंचक्रोशी यात्रा अवश्य करे.

काशीखंड के 22वें अध्याय में ब्रह्माजी ने कहा है कि काशी का नाम मात्र लेने से, काशी का नाम जपने मात्र से और काशी में प्रवेश करने मात्र से व्यकित को नाना प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, किसी भी जाने अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति पाने के लिए पंचक्रोशी यात्रा विधान है. पंचक्रोशी यात्रा 76 किलोमीटर में फैली हुई यात्रा है.श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ज्ञानवापी से संकल्प लेने के बाद पंचक्रोशी यात्रा शुरू की जाती है. श्रद्धालु कूप का जल अपनी संजोली में लेकर इस यात्रा को शुरू करने का वचन लेते हैं.

यह एक तरह से यात्रा पूरी करने का संकल्प होता है. हालांकि पंचक्रोशी यात्रा मणिकर्णिका घाट से शुरू होती है और इसका समापन भी यहीं होता है. यदि मन में कोई इच्छा होती है तो उसको पूरी करने के लिए पंचक्रोशी यात्रा सबसे उत्तम मानी जाता है.पंचक्रोशी यात्रा में पांच पड़ाव हैं जिनसे गुजरने के लिए श्रद्धालुओं को करीब 50 मील की दूरी तय करनी होती है।
पंचक्रोशी यात्रा के दौरान पांचों पड़ावों पर पांच बड़े मंदिर हैं जो आस्था के केंद्र माने जाते हैं. इन मंदिरों के पास करीब 2500 धर्मशालाएं हैं.पंचक्रोशी यात्रा करने से पहले श्रद्धालु को भगवान श्रीगणेश की अराधना करनी चाहिए. साथ ही उनसे प्रार्थना करके, गणेश वंदना करके उनसे यात्रा का आज्ञा लें और उसके बाद ही यात्रा शुरू करनी चाहिए । चैत्र के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि, चतुर्थी तिथि या पंचमी तिथि को आप पंचक्रोशी यात्रा कर सकते हैं.

मार्गशीर्ष का महीना पंचक्रोशी यात्रा करने के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ माना गया है. यह यात्रा 3 दिन, 5 दिन और 7 दिन तक की की जाती है. इस यात्रा में 122 स्थान पर देव अराधना करने का प्रावधान है और अंत में काल भैरव का दर्शन करने के पश्चात ही यह यात्रा पूर्ण मानी जाती है. पंचक्रोशी यात्री का पहला पड़ाव कर्दमेश्वर है जिसके बाद श्रद्धालु यात्रा के दूसरे पड़ाव भीम चंडी पहुंचते हैं.

भीम चंडी के बाद श्रद्धालु यात्रा के तीसरे पड़ाव भीम चंडी रामेश्वर और फिर वहां से शिवपुर जाने के बाद यात्रा के अंतिम पड़ाव कपिलधारा पर जाते हैं. कपिलधारा से दोबारा मणिकर्णिका घाट पर जाकर यह यात्रा समाप्त होती है.कहा जाता है कि पंचक्रोशी यात्रा की शुरुआत त्रेता युग से हुई थी. धार्मिक ग्रंथों में पंचक्रोशी यात्रा का बहुत महत्व माना जाता है. त्रेता युग में भगवान राम ने अपने तीनों भाइयों भरत, लक्ष्मण और क्षत्रु और पत्नी के सीता के साथ काशी में पंचक्रोशी यात्रा की थी. भगवान राम ने खुद रामेश्वरम मंदिर में शिवलिंग स्थापित किया था. उन्होंने ये यात्रा अपने पिता दशरथ को श्रवण कुमार के माता पिता के श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए की थी. द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञावास के दौरान ये यात्रा द्रौपदी के साथ की थी ।