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Top News: राजनीतिक पंडित और जनता का मूड

नई दिल्ली । लोकसभा चुनाव नतीजों ने बताया कि राजनीतिक पंडित कितने भी गुणा-गणित और विश्लेषण कर लें, कई बार वे जनता का मूड भांपने में गलती कर जाते हैं। एग्जिट पोल के अनुमानों के बाद आए लोकसभा चुनाव के नतीजों ने जरूर लोगो को चौंकाया हैं। इनमें भी सबसे अधिक हैरान किया 80 सीटों वाले यूपी ने। 2014 और 2019 में बीजेपी को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में इस राज्य ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। इस बार यहां बीजेपी और इंडी में करीब-करीब बराबरी का मुकाबला दिखा, जिसकी उम्मीद शायद ही किसी को थी।

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बिहार, कर्नाटक और बंगाल में भी बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा। इनमें से बिहार और कर्नाटक में पार्टी ने पिछले चुनावों में बहुत ही शानदार प्रदर्शन किया था। इन चुनावों में कई रीजनल पार्टियों का प्रदर्शन अच्छा रहा है। इसी तरह एनडीए के घटक दलों को भी नई ऑक्सिजन मिली है। उनकी बारगेनिंग पावर बढ़ गई है।एग्जिट पोल्स में अकेले बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलता दिखाया गया था। अगर ऐसा होता तो नरेंद्र मोदी भारतीय इतिहास के इकलौते राजनेता बन जाते, जिनके नेतृत्व में हर जीत पहले से बड़ी होती गई।

लेकिन, चुनाव परिणाम इकतरफा नहीं रहा। एनडीए और इंडी दोनों के पास जश्न मनाने के लिए कुछ न कुछ है।सीटों के लिहाज से बीजेपी को भले ही नुकसान हुआ, लेकिन लगातार तीसरी बार वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। ओडिशा और तेलंगाना में पार्टी ने प्रदर्शन से सबको सरप्राइज किया। ओडिशा में लोकसभा ही नहीं, विधानसभा में भी पार्टी ने बीजू जनता दल का 24 साल से चला आ रहा वर्चस्व तोड़ा। वहीं, गुजरात और मध्य प्रदेश बीजेपी के गढ़ बने हुए हैं, जबकि देश की सियासत में अब भी ब्रैंड मोदी सबसे बड़ा है।पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास इतनी भी सीटें नहीं थीं कि वह सदन में विपक्ष का आधिकारिक दर्जा हासिल कर सके।

लेकिन, कांग्रेस ने वापसी कर जाहिर कर दिया कि देश में बीजेपी को टक्कर देनी है तो उसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इस चुनाव में कांग्रेस ने कई जगह गठबंधन में छोटे भाई की भूमिका निभाई। लेकिन, इंडी को जितनी सीटें मिलीं, उससे पार्टी का कद जरूर बढ़ेगा।शरद पवार का राजनीतिक वारिस कौन और असली शिवसेना किसकी? क्या माया और ममता अब भी ताकतवर हैं? यह चुनाव ऐसे ही कई सवालों के साथ शुरू हुआ था।

इनमें से कुछ के जवाब मिल गए हैं और कुछ के बाकी हैं। जिस तरह के नतीजे आए हैं, उससे यह संदेह भी पैदा हुआ है कि क्या देश में आर्थिक सुधार जारी रहेंगे? नीतिगत स्थिरता का क्या होगा? शायद इसी संदेह की वजह से शेयर बाजार में भारी गिरावट आई। आशा है कि इन सवालों का जवाब आने वाले कुछ दिनों में मिल जाएगा ।

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