Bihar News: अयोध्या में राम प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या की कल्पना मिथिला और भारत की पहचान ही ज्ञान है : आरिफ खान राज्यपाल

बिहार। दरभंगा के लहेरिया सराय समाहरणालय के प्रेक्षागृह में शनिवार को दरभंगा केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का आगमन हुआ । इस दौरान राज्यपाल आरिफ खान का भव्य स्वागत किया गया और मखाने की माला , पाग व मधुबनी पेंटिग देकर लोगो ने सम्मान किया । इस मौके पर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि मिथिला ज्ञान का केंद्र है तो एक तरह से यह भारत को इसमें सामूहिक कर दिया गया है। इस धरती को ध्यान रखिएगा कि केवल ज्ञान की धरती भी नहीं, बल्कि कहना चाहिए कि पूरे ज्ञान की धरती है। इसमें कर्तव्य परायणता है और साथ में यह कर्म योग भी । राज्यपाल यहां एक समारोह ‘भारतीय संस्कृति एवं सारभौमिक महत्व’ विषय पर आयोजित सेमिनार में सम्मिलित होने दरभंगा आए हैं। इस मौके पर उन्होंने कहा कि पूरे राष्ट्र में उत्सव और खुशी का माहौल है। अयोध्या में राम प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या की कल्पना मिथिला के बगैर नहीं की जा सकती है। भारत की पहचान ही ज्ञान है। एक तरह से देखें तो मिथिला और भारत की पहचान ही ज्ञान है।
यह मिथिला की विशेषता है और ऐसी विशेष जगह पर इतने अच्छे लोगों के बीच में अपनी बात कहने का मौका मिला। उन्होंने कहा कि लेकिन आज का यूनान, आज का मिस्त्र, आज का वह क्षेत्र जहां सुमेरियन और लांनियन सभ्यता थी, उस प्राचीन सभ्यता से उनका संबंध कट गया। प्राचीन सभ्यता के क्या आदर्श मूल्य थे, उस भाषा को भी समझने में विशेषण लगे हुए हैं। भारतीय संस्कृति की खास बात यह है कि इसकी निरंतरता बनी हुई है। वे आदर्श, वे मूल्य जो आज से हजारों साल पहले भारतीयों के मानस को प्रेरित करते थे। आज भी वह जिंदा हैं और आज भी हमारे मानस को प्रेरित करते हैं। निरंतर जो है इसे भी समझने की जरूरत है। राज्यपाल ने कहा कि बहुत दफा लोग कोट करते हैं कि इकबाल ने कहा- ‘सब मिट गए जहां से, बाकी मगर है अब तक निशां हमारा। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहां हमारा’। उन्होंने कहा कि अब इसमें क्या-क्या चीज स्वीकार की गई है। कुछ बात है कि हमारी संस्कृति हमारी हस्ती मिटती नहीं। वह क्या बात है, वह नहीं पता। वह हमें मिलती है और भी जगह मिलती होगी। उन्होंने कहा कि मुझे भारत से प्रेम इसलिए नहीं है कि मैं भौगोलिक मूर्ति बनाकर उसकी पूजा-अर्चना करना चाहता हूं, मेरा सौभाग्य है कि मैं भारत भूमि में पैदा हुआ हूं। मुझे भारत से प्रेम इसलिए है कि भारत में उन आलौकिक शब्दों को जो उसके बच्चों की चेतना से निकले थे। उन विषम परिस्थितियों में भी बचा कर रखा है, जिसे कल का स्वर्णिम काल कहा जाता है। स्वर्णिम काल की शुरुआत कैसे हुई, इसकी शुरुआत हुई भारतीय पुस्तकों के अरबी में अनुवाद से। भारत ऐसा ज्ञान का केंद्र जहां दुनिया के विभिन्न देशों के लोग आएंगे। हमारे बारे में अध्ययन करने के लिए नहीं बल्कि खुद अपनी संस्कृति, अपने आदर्श, अपने मूल्य और अपने ज्ञान के अध्ययन के लिए आएंगे।