Varanàsi : जगद्गुरु विश्वाराध्य जयन्ती पर वेदान्त विषय में शास्त्रार्थ और विद्वानों का सम्मान समारोह

वाराणसी। जगद्गुरु विश्वाराध्य जयन्ती के अवसर पर प्रतिवर्ष होने वाली संस्कृत के विद्वानों की सभा सोमवार को ‘अथातोब्रह्मजिज्ञासा’ विषय पर वेदान्त विषय में शास्त्रार्थ का जगद्गुरु 1008 डॉ चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी की अध्यक्षता में विशाल सभा का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में ‘जगद्गुरु विश्वाराध्य विश्वभारती’ सम्मान सुप्रसिद् विद्वान आचार्य कमलाकान्त त्रिपाठी, ‘व्रजवल्लभ द्विवेदी शैवभारती’ सम्मान मूर्धन्य विद्वान आचार्य धर्मदत्त चतुर्वेदी तथा सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ परमेश्वर दत्त शुक्ल को ‘जयदेवश्रीः साहित्य’ सम्मान, ‘कोडिमठ संस्कृत साहित्य’ सम्मान आचार्य मृत्युंजय त्रिपाठी, ‘सिद्धान्तशिखामणि गौरव’ सम्मान युवा विद्वान डॉ वृहस्पति भट्टाचार्य, ‘लि सौ सिन्धुसुभाषम्हमाने मातृशक्ति’ सम्मान श्रीमती पद्मश्री पाण्डुरंग पुराणिक को प्रदान कर सम्मानित किया गया। श्रीसिद्धान्त शिखामणि बंगला भाषा, मोक्ष नगरी का जीवन दर्शन डॉ रामसुधार सिंह एवं ‘दि इण्टरनेशनल जरनल ऑफ सोशल साइंस एण्ड लिग्विस्टिक डॉ तरूण कुमार द्विवेदी नामक तीनों कृतियो का विमोचन जगद्गुरु के करकमलों से हुआ। इस मौके पर विद्वान आचार्य कमलाकान्त त्रिपाठी ने मठ की प्राचीन परम्परा से प्रभावित होकर अपनी सारस्वत सेवा मठ को देने की घोषणा करते हुए कहा कि ज्ञान सिंहासन और काशी का गौरव पूर्ण इतिहास दोनो का सम्बन्ध रहा है वही परम्परा आज भी मठ में चली आ रही है। प्राचीन जगद्गुरु महास्वामी की जीवन्त समाधियां इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रो. धर्मदत्त चतुर्वेदी जी ने कहा कि मुझे तो मठ से निरन्तर ज्ञान परम्परा का बोध होता है, यह मठ काशी के महत्वपूर्ण धरोहर के रूप मे सुरक्षित है, ज्ञान सिहांसन का ज्ञान मन्दिर पुस्तकालय अपने आप में एक अमूल्य निधि है। यहां के दुर्लभ ग्रन्थों ने अनेक अवसरों पर न्यायालयों में न्याय करने में सहायता प्रदान की है। डॉ परमेश्वरदत्त शुक्ल ने कहां कि शैवागमों के उन्नयन में यह मठ सदैव आगे रहा है। यह स्थान जगद्गुरुओं के प्राकाठ्य का प्रमुख केन्द्र है जहां कि हजारों वर्ष की परम्परा आज भी चली आ रही है। आचार्य मृत्युजंय त्रिपाठी जी अपने सम्मान से अभिभूत होकर कहा कि यह साक्षात शिवस्वरूप शिवाचार्य का कृपा प्रसाद है। डॉ वृहस्पति भट्टाचार्य ने कहां कि मुझे यह सिद्धान्त शिखामणि के गौरव का सम्मान नही आशीर्वाद मिला है। इसके अध्ययन से मेरे ज्ञान चक्षु खुल गये और मैं इसको बंगला भाषा मे रूपान्तरित कर पाया, यह मेरे लिये पीठ का अमोघ आशीर्वाद है। श्रीमती पद्नी पाण्डुरंग पुराणिक ने कहां कि मैं यहां की ज्ञान परम्परा को सुनती आ रही थी लेकिन यहां के ज्ञानवैभव ने मेरे अज्ञानरूपी बन्द चक्षु को खोल दिये। मैं इस सम्मान से अभिभूत हूं। विद्वत्सभा की अध्यक्षता करते हुए डॉ चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी ने कहां कि यह मठ काशी की विद्वत्परम्परा के प्रति कृतज्ञ है। काशी के विद्वानों के सहयोग से ही शैवभारती प्रकाशन ने आगमशास्त्र के महत्वपूर्ण 110 ग्रन्थों का सम्पादन प्रकाशन किया। श्रीसिद्धान्तशिखामणि ग्रन्थ का दो विदेशी एवं उन्नीस भारतीय भाषाओं में प्रकाशित है। अपर जगद्गुरु डॉ मल्लिकार्जुन विश्वाराध्य शिवाचार्य महास्वामी ने मठ के ज्ञानवैभव को अधिक से अधिक पल्लवित करने में काशी के विद्वानों का आवाहन किया। विद्वत सभा मठ की प्राचीन परम्परा रही है। काशी के विद्वानों के समागम से ही यह सम्भव हो रहा है। आगत विद्वानों का मठ के प्रबन्धक आर के स्वामी एवं शिवानन्द ने पूजन किया। संचालन एवं आभार विनोदराव पाठक ने किया।