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Dharm : अर्धनारीश्वर रूप की कथा , शिव के बिना शक्ति अधूरी ,शक्ति के बिना शिव

धर्म के प्रति बेहद कम लोग जानते हैं कि भगवान् शिव का अर्द्धनारीश्वर स्वरूप हरेक मनुष्य के अंदर मौजूद है। प्रत्येक मनुष्य शिव और शक्ति में बंटा है। उसके अंदर स्त्री ऊर्जा भी है और पुरुष ऊर्जा भी और जिस प्रकार शिव के बिना शक्ति अधूरी हैं और शक्ति के बिना शिव, ठीक वैसे ही अगर उसकी एक भी ऊर्जा कमजोर होती है, तो वह अधूरा हो जाता है। यह सुनना आपको थोड़ा अजीब लग रहा होगा लेकिन यह कांसेप्ट आपके जीवन को बहुत प्रभावित करता है। कैसे, आइए जानते हैं…इस पुरुष सत्तात्मक संसार में ‘शिव’ के महिमा का जितना गुणगान होता है उतना ‘शक्ति’ का नहीं जबकि शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं और शिव के बिना शक्ति। हर व्यक्ति इस प्राकृतिक सम्बन्ध से जुड़ा है लेकिन अपनी संकीर्ण सोच के कारण उसने अपने अंदर की स्त्री ऊर्जा को कमजोर कर दिया है। शिव और शक्ति किस प्रकार आपसे जुड़े हैं, इसे समझने से पहले ये समझते हैं कि शिव और शक्ति का क्या सम्बन्ध है और शक्ति के बिना शिव क्यों अधूरे माने जाते हैं।शिव को शक्ति के बिना अधूरा माना जाता है क्योंकि शिव और शक्ति एक दूसरे के पूरक हैं। शिव, ब्रह्मांड के निर्माण, संहार और पुनर्निर्माण के देवता हैं, जबकि शक्ति उनकी ऊर्जा हैं। भगवान शिव के सृष्टि के निर्माण या विनाश की कोई भी क्षमता शक्ति के बिना अधूरी है। इसलिए, शिव और शक्ति को एक ही सत्ता के दो पहलुओं के रूप में देखा जाता है। भगवान् शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप इसकी बेहतर ढंग से व्याख्या करता है जिसमें दर्शाया गया है कि उनका आधा शरीर पुरुष (शिव) और आधा शरीर स्त्री (शक्ति या पार्वती) का होता है और दोनों इतने अविभाज्य हैं कि एक-दूसरे से अलग नहीं किए जा सकते हैं।दोनों किस प्रकार एक-दूसरे से जुड़े हैं, इससे सम्बंधित एक कथा भी प्रचलित है। कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया, तो उन्होंने पाया कि उनकी रचनाएँ अपने जीवनकाल को पूर्ण करते ही नष्ट हो जाएंगी और हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। यह उनके लिए विकट समस्या थी और इसके समाधान के लिए वो भगवान् शिव के शरण में पहुंचे। ब्रह्मा के समस्या के सामाधान के लिए शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की और उन्हें स्त्री ऊर्जा (प्रकृति) और पुरुष ऊर्जा (पुरुष तत्व) का महत्व भी समझाया।अर्धनारीश्वर रूप की कथा मूल रूप से इस बात की अभिव्यक्ति है कि आपके अंदर पुरुषत्व और स्त्रीत्व बराबर भागों में बँटा हुआ है और आप एक बेहतर स्थिति में या आनंद की अवस्था में रहें, इसके लिए आवश्यक है कि आपके अंदर के पुरुषत्व और स्त्रीत्व संतुलित रहें। शक्ति, आपमें प्राण ऊर्जा के रूप में प्रवाहित होती है और शिव आपके मस्तिष्क में बैठे शक्ति को दिशा प्रदान करते हैं। शक्ति के बिना आपका जीवन चलायमान नहीं हो सकता। अर्धनारीश्वर स्वरुप की तरह आपके शरीर का बायां हिस्सा स्त्री ऊर्जा से जुड़ा है और दायां हिस्सा पुरुष ऊर्जा से। स्त्री ऊर्जा भावनायें, दया, करुणा, रचना, अंतर्ज्ञान इत्यादि से जुडी है। यह आपमें ऊर्जा का निर्माण और उसका पोषण करती है। पुरुष सत्तात्मक समाज में से प्रभावित होने के कारण अक्सर लोग न केवल स्त्रियों को कमजोर समझते हैं बल्कि वह अपने अंदर की उस स्त्री ऊर्जा को भी दबा देते हैं, जो उन्हें प्रचुरता, सृजन, जीवन और प्रेम जैसी भावना दे सकती है। आज के दौर में लोग पुरुष ऊर्जा को मजबूत बनाते हैं जससे उनमें रचनात्मकता, करुणा, शान्ति जैसे भावों का अभाव हो जाता है और क्रूरता और कठोरता जैसी भावनाये जगह ले लेती हैं।इस जानकारी के अभाव में कि हर व्यक्ति पुरुष और प्रकृति में बंटा है, लोग अपनी स्त्री ऊर्जा को दबाते जाते हैं। कोई कमजोर नहीं दिखाना चाहता, इसलिए अपनी, भावनाओं को दबाता रहा है। लेकिन अगर आप अपनी क्षमता, अंतर्ज्ञान, चेतना उच्चतर करना चाहते हैं, तो आपको अपनी स्त्री ऊर्जा को सशक्त बनाना पड़ेगा। अपने भीतर मौजूद शिव के साथ-साथ शक्ति को भी पूजना और पोषित करना पड़ेगा। तभी आप भी सम्पूर्ण हो पाएंगे।

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