Varanàsi : माह – ए – रमजान में रोजे रखना हर एक मुसलमान का फर्ज

वाराणसी । रमजान – ए- पाक का महीना 1या 2 मार्च से शुरू होने जा रहा हैं,हर मुसलमान के लिए ये महीना बहुत अहमियत रखता हैं।इस्लाम धर्म में रमजान का महीना सबसे खास माना जाता है, जो कि इस्लामिक (हिजरी) कैलेंडर का नौंवा महीना होता है. माह-ए-रमजान को इबादत, रहमत और बरकतों वाला महीना माना गया है ।
रमजान के चांद का दीदार होने के साथ ही नमाजों, इबादतों और दुआओं का दौर भी शुरू हो जाता है. रमजान के महीने में मुसलमान रोजे रखते हैं और अल्लाह की इबादत में मशगूल रहते हैं. माह-ए-रमजान में रोजे रखना हर एक मुसलमान पर फर्ज है, जो कि इस्लाम के 5 फर्ज में से एक है. इस्लाम में पांच फर्ज हैं: – शहादत, नमाज, रोजा, जकात और हज.ऐसे में रोजाना पांच वक्त की नमाज पढ़ना इस्लाम का एक बुनियादी हिस्सा है. इस्लाम धर्म में अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाने वाले सभी लोगों पर नमाज फर्ज होती है, फिर चाहे वो मर्द हो या औरत, गरीब हो या अमीर, सभी लोगों के लिए 5 वक्त की नमाज पढ़ना जरूरी होता है. रमजान के मुकद्दस महीने में पांच वक्त की नमाज के अलावा भी नमाज पढ़ जाती है, जिसे तरावीह कहा जाता है । रमजान में पढ़ी जाने वाली तरावीह की नमाज रोजाना पांच वक्त की नमाज से अलग होती है, जो कि रमजान में ईशा की नमाज के बाद अदा की जाती है. तरावीह की नमाज सुन्नत मानी गई है. इस्लाम में सुन्नत का मतलब आपकी अपनी मर्जी पर डिपेंड करता है, जिन्हें न करने पर कोई गुनाह नहीं होता, लेकिन करने पर ज्यादा सवाब मिलता है. सुन्नत का मतलब होता है पैगंबर मुहम्मद के बताए हुए नक्शे कदम पर चलना. वहीं, इस्लाम में, फर्ज नमाज वो नमाज होती है, जिसे पढ़ना हर मुसलमान पर फर्ज होता है. फर्ज नमाज न पढ़ना गुनाह माना जाता है ।फज्र (तड़के) जुहर (दोपहर)
असर (सूरज ढलने से पहले)
मगरिब (सूरज छिपने के बाद)
ईशा (रात) तरावीह की नमाज सुन्नत-ए-मुअक्कदा की नमाज होती है यानी इसे पढ़ना बेहद सवाब का काम है और इसे न पढ़ने पर कोई गुनाह भी नहीं मिलता है. इस्लाम में सुन्नत-ए-मुअक्कदा उस नमाज को कहते हैं, जिसे पैगंबर मुहम्मद ने हमेशा पढ़ा हो. ऐसा कहा जाता है कि पैगंबर साहब ने पहली मर्तबा रमजान में तरावीह की नमाज अदा की थी, इसलिए तब से तरावीह की नमाज पढ़ना सुन्नत माना जाता है. 20 रकात तरावीह की नमाज पढ़ना हदीसों से साबित मिलता है । तरावीह की नमाज 2-2 रकात करके 20 रकातें पढ़ी जाती हैं, जबकि पांच वक्त की नमाज में 2, 4 या 3 रकातें होती हैं. तरावीह की नमाज की नियत में वक्त अलग नहीं होता है. पांच वक्त की नमाज की नियत में वक्त अलग-अलग होता है. तरावीह की नमाज में हर रकात में अलग-अलग सूरह पढ़ी जाती है, जबकि पांच वक्त की नमाज में कोई ऐसी पाबंदी नहीं होती है ।
मुफ्ती सलाउद्दीन कासमी ने बताया कि तरावीह की नमाज में हर सजदे पर 1500 नेकियां लिखी जाती हैं. अल्लाह तआला आसमान से तरावीह पढ़ने वाले लोगों को देखता है और उनपर अपनी रहमत बरसाता है. इसलिए रमजान सबसे मुबारक महीना कहा जाता है. इस पाक महीने में अल्लाह की रहमतें दुनिया पर बरसती हैं और इस महीने में की गई इबादतों का सवाब कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है । तरावीह की नमाज में 8 या 20 रकात पढ़ी जा सकती हैं. ईशा की नमाज के बाद तरावीह की नमाज 2-2 रकात करके 20 रकातें पढ़ी जाती हैं यानी हर 2 रकात के बाद सलाम फेरा जाता है. साथ ही, हर 4 रकात के बाद तरावीह की दुआ या तस्बीह भी पढ़ने की रिवायत है. इसी तरह 20 रकात तरावीह की नमाज पूरी की जाती है । तरावीह की नमाज में हर रकात की शुरुआत सूरह अल-फातिहा से की जाती है. तरावीह की नमाज में दुआ में नमाजी अपने मुल्क की सलामती, परिवार की खुशियां और रोजी-रोजगार की दुआ मांगते हैं. तरावीह की नमाज पढ़ने से अल्लाह की रहमत और बरकत बनी रहती है । तरावीह की नमाज के दौरान आप कुरआन की जो भी सूरह चाहें, उसे पढ़ सकते हैं. तरावीह की नमाज में नियत सबसे ज्यादा अहमियत रखती है, इसलिए अगर आपको बहुत सी सूरह याद नहीं हैं, तो परेशान न हों और जो सूरह याद हो वो पढ़ लें.
तरावीह की नमाज एक सुन्नत है, फर्ज नहीं. इसलिए अगर कोई मुसलमान तरावीह नहीं पढ़ता तो उस पर कोई गुनाह नहीं है, चाहे उसके पास कोई बहाना हो या न हो। मर्दों के लिए तरावीह की नमाज जमात के साथ पढ़ना बेहतर है लेकिन अगर किसी वजह से वो मस्जिद में तरावीह की नमाज नहीं पढ़ सकता है, तो घर पर अकेले भी तरावीह की नमाज अदा की जा सकती है ।