उत्तर प्रदेशवाराणसी

Varanàsi News : भाई और बहन का पवित्र रिश्ते का प्रतीक रक्षाबंधन

वाराणसी । रक्षाबंधन त्यौहार पूरे देश में बड़े ही हर्षौल्लास के साथ मनाया जाता है इस दिन भाई और बहन की पवित्र रिश्‍ते का प्रतीक माना गया है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उनकी दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं। भाई इस दिन अपनी बहनों को प्‍यारे-प्‍यारे उपहार देते हैं और उनकी रक्षा करने का वचन लेते हैं। आईए जानते है रक्षाबंधन को मनाने की शुरुआत कैसे हुई, इसको लेकर पौराणिक मान्‍यताएं क्या , क्या है । पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब असुर राजा बलि के दान धर्म से खुश होकर भगवान विष्णु ने उससे वरदान मांगने को कहा तो राजा बलि ने विष्णु भगवान से अपने साथ पाताल लोक में चलने को कहा और उनके साथ वही रह जाने का वरदान मांगा. तब विष्णु भगवान उनके सात बैकुंठ धाम को छोड़ कर पाताल लोक चले गए. बैकुंठ में माता लक्ष्मी अकेली पड़ गईं. भगवान विष्णु को पताल लोक से वैकुंठ लाने के लिए माता लक्ष्मी ने अनेक प्रयास करने लगीं. फिर एक दिन मां लक्ष्मी राजा बलि के यहां एक गरीब महिला का रूप धारण करके रहने लगीं. जब मां एक दिन रोने लगी तब राजा बलि ने उनसे रोने का कारण पूछा तब माता लक्ष्मी ने बताया कि उनका कोई भाई नहीं है, इसलिए वे उदास हैं. ऐसे में राजा बलि ने उनका भाई बनकर उनकी इच्छा पूरी की और माता लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा. फिर राजा बलि ने उनसे इस पवित्र मौके पर कुछ मांगने को कहा तो मां लक्ष्मी ने विष्णु जी को अपने वर के रूप में मांग लिया और इस तरह श्री विष्णु भगवान बैकुंठ धाम वापस आए । माना जाता है कि यह त्‍योहार महाराज दशरथ के हाथों श्रवण कुमार की मृत्‍यु से भी जुड़ा है। इसलिए मानते हैं कि यह रक्षासूत्र सबसे पहले गणेशजी को अर्पित करना चाहिए और फिर श्रवण कुमार के नाम से एक राखी अलग निकाल देनी चाहिए। जिसे आप प्राणदायक वृक्षों को भी बांध सकते हैं गुरु शिष्य को भी बाध सकते हैं । कथाएं के अनुसार महाभारत की कथा से भी जुड़ी हुई है। युद्ध में पांडवों की जीत को सुनिश्चित करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर को सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने का सुझाव दिया था। वहीं अभिमन्‍यु युद्ध में विजयी हों, इसके लिए उनकी दादी माता कुंती ने भी उनके हाथ पर रक्षा सूत्र बांधकर भेजा था। वहीं द्रौपदी ने भी उनकी लाज बचाने वाले अपने सखा और भाई कृष्‍णजी को भी राखी बांधी थी। इस दिन सावन के महीने की पूर्णिमा तिथि थी।पौराणिक कथाओं में पति-पत्‍नी के बीच भी राखी का त्‍योहार मनाने की परंपरा का वर्णन मिलता है। एक बार देवराज इंद्र और दानवों के बीच में भीषण युद्ध हुआ था तो दानवों की हार होने लगी थी। तब देवराज की पत्‍नी शुचि ने गुरु बृहस्पति के कहने पर देवराज इंद्र की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था। तब जाकर समस्‍य देवताओं के प्राण बच पाए थे।

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