उत्तर प्रदेशवाराणसी

Varanàsi News : मार्कण्डेय महादेव मंदिर धार्मिक स्थलों में से एक , जहां से यमराज को भी वापस जाना पड़ा

वाराणसी । कहा जाता है कि प्राचीन काल में जब मार्कण्डेय ऋषि पैदा हुए थे तो उन्हें आयु दोष था ।उनके पिता ऋषि मृकंड को ज्योतिषियों ने बताया कि बालक की आयु मात्र 14 वर्ष है। यह सुनकर माता पिता सदमे में आ गए । ज्ञानी ब्राह्मणों की सलाह पर बालक मार्कण्डेय के माता पिता गोमती संगम तट पर बालू से शिव विग्रह बनाकर शिव की अर्चना करने लगे और भगवान शंकर की घोर उपासना में लीन हो गए । बालक मार्कण्डेय के जैसे ही 14 वर्ष पूरे हुए तो यमराज उन्हें लेने आ गए । बालक मार्कण्डेय भी उस वक्त भगवान शंकर की आराधना में लीन थे । उनके प्राण हरने के लिए जैसे ही यमराज आगे बढ़े तभी भगवान शंकर प्रकट हो गए । भगवान शंकर के साक्षात् प्रकट होते ही यमराज को अपने पाव वापस लेने पड़े । भगवान शंकर ने कहा कि मेरा भक्त सदैव अमर रहेगा , मुझसे पहले उसकी पूजा की जाएगी तभी से उस जगह पर मार्कण्डेय जी व महादेव जी की पूजा की जाने लगी और तभी से यह स्थल मार्कण्डेय महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया । तभी से शंकर भगवान की मंदिर में ही दिवाल में मार्कण्डेय महादेव की पूजा होने लगी लोगो का ऐसा मानना है कि महाशिवरात्रि व सावन मास में यहां राम नाम लिखा बेल पत्र व एक लोटा जल चढ़ाने से ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। यह मंदिर
वाराणसी से करीब 30 किमी दूर गंगा-गोमती के संगम तट पर स्थित है । मार्कंडेय महादेव मंदिर में सावन मास के अवसर पर भक्तों का तांता लगा हुआ है। यह मंदिर वाराणसी गाजीपुर राजमार्ग पर कैथी गांव के पास है। सावन मास या महाशिवरात्री के अवसर पर यहां पूर्वांचल के विभिन्न जिलों से लाखों भक्त जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। सावन मास या ‌‌शिवरात्री के अवसर पर यहां काशी विश्वनाथ मंदिर से भी ज्यादा भीड़ होती है। सावन माह में भी एक माह का मेला लगता है। मार्कण्डेय महादेव मंदिर उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों में से एक है। विभिन्न प्रकार की परेशानियों से ग्रसित लोग अपनी दुःखों को दूर करने के लिए यहाँ आते हैं। मार्कण्डेय महादेव मंदिर की मान्यता है कि सावन मास या ‘महाशिवरात्रि’ और उसके दूसरे दिन श्रीराम नाम लिखा बेल पत्र अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। मंदिर के बारे में और कई कहानियां प्रचलन में है।मार्कण्डेय महादेव मंदिर में त्रयोदशी (तेरस) का भी बड़ा महत्व होता है। यहां पुत्र रत्न की कामना व पति के दीर्घायु की कामना को लेकर लोग आते है। यहां महामृत्युंजय, शिवपुराण , रुद्राभिषेक, व सत्यनारायण भगवान की कथा का भी भक्त अनुश्रवण करते हैं। सावन मास या महाशिवरात्रि पर दो दिनो तक अनवरत जलाभिषेक करने की परम्परा है।यहां दुसरे दिन ग्रामीण घरेलू सामानों की खरीदारी भी करते हैं। यहां मेले में भेड़ों की लड़ाई आकर्षक होती है। महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या गाजीपुर , मऊ , बलिया , गोरखपुर , देवरिया , आजमगढ ,समेत कई अन्य जनपदों के लोगों का जमघट लगा रहता है। और लगातार अनवरत जलाभिषेक होता रहता है ।

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